सीएम और तीन मंत्री के दुर्ग पर क्या भाजपा की होगी विजय

नजरिया : यशवंत गोहिल
लोकसभा चुनाव ।

छत्तीसगढ़ का दुर्ग कौन ढहाएगा? इस बात को लेकर इतना विचार विमर्श चल रहा है, इतना मंथन हो रहा है, इतनी चर्चा हो रही है कि इसे प्रदेश की सबसे हाईप्रोफाइल सीट कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। आप सोचिए, कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता और वरिष्ठ मोतीलाल वोरा यहीं से हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का विधानसभा क्षेत्र भी यहीं से आता है। इतना ही नहीं, वर्तमान में यह सीट कांग्रेस के पास ही है और सांसद ताम्रध्वज साहू अब विधायक और प्रदेश के कद्दावर मंत्रियों में शुमार हैं। जातिगत समीकरण उनके पक्ष में रहा है। इसके अलावा कृषि मंत्री रविंद्र चौबे और पीएचई मंत्री गुरु रूद्र कुमार भी इसी लोकसभा की विधानसभा क्षेत्रों से आते हैं। मुख्यमंत्री और मंत्रियों के कारण और वर्तामान सांसद के कारण यह सीट कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का भी प्रश्न बन गई है। लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या कांग्रेस अपना दुर्ग बचा पाएगी?

दुर्ग से कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार प्रतिमा चंद्राकर को बनाया है। जातिगत समीकरणों में वे खरी उतरती हैं लेकिन उनके सामने भाजपा ने भी विजय बघेल को उतारा है। विजय बघेल मुख्यमंत्री के भतीजे भी हैं, लेकिन दोनों विरोधी पार्टी में रहे हैं। एक बात और गौर करने वाली है कि ये प्रतिमा चंद्राकर वही महिला हैं, जिनकी सीट विधानसभा चुनावों में काट दी गई थी। नाम घोषित होने के बाद जब उनकी टिकट काटी गई और ताम्रध्वज साहू को विधानसभा चुनाव लड़ाने की घोषणा की गई, तभी लगभग यह तय हो गया था कि प्रतिमा चंद्राकर को मौका मिलेगा।

इस क्षेत्र में अगर भाजपा के दिग्गजों की बात करें, तो पिछले विधानसभा चुनावों में प्रेमप्रकाश पांडे हार गए हैं। भाजपा के संगठन से सरोज पांडेय यहां से बड़ा नाम है। पूर्व मंत्री रमशीला साहू भी इसी क्षेत्र से आती थीं, लेकिन वे भी चुनाव हार चुकी हैं। ऐसे में दुर्ग लोकसभा ढहाना काफी कठिन चुनौती है। हालांकि विजय बघेल ने जो नामांकन रैली निकाली, उसमें गुटबाजी से इतर एक नया समीकरण भी देखा गया, लेकिन धरातल पर यह कितना सच्चा है, इसका फैसला नतीजा करेगा।

राजनीतिज्ञों की मानें तो दुर्ग में भाजपा की जीत से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सीधा झटका लगेगा। और यही कारण है कि कुछ विरोधी हो सकता है कि अंदरूनी रूप से नुकसान पहुंचाने की कोशिश करें। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बहुत कम समय में तेजी से काम कर खुद को साबित किया, जिससे गढ़ छत्तीस में उनके वजन का ग्राफ बेहद तेजी से ऊपर गया है। अगर भाजपा यह सीट जीतती है, तो विरोधी यह संदेश देंगे कि मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों के गढ़ में विरोधी को मात दी।

दुर्ग में इस बात को लेकर भी जबरदस्त चर्चा है कि यहां ताम्रध्वज साहू नाराज चल रहे थे। वे चाहते थे कि उनके बेटे को टिकट मिले, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और प्रतिमा चंद्राकर को टिकट मिली। ताम्रध्वज साहू अभी तक प्रचार अभियान में पूरी तरह सक्रिय नहीं हुए हैं। उधर, मोतीलाल वोरा के पुत्र अरुण वोरा भी इस कारण थोड़े नाराज दिखते हैं क्योंकि उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। अब एक ही क्षेत्र से तीन मंत्री और एक मुख्यमंत्री के होते हुए शायद यह संभव भी नहीं था, पर नाराजगी तो है। वरिष्ठता और वरिष्ठतम नेता के सुपुत्र होने के बावजूद यह नहीं हो पाया। और यही कारण है कि कांग्रेस की अंदरूनी नाराजगी का फायदा भाजपा को होने की संभावना कही जा रही है।

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