अरुण के साथ है मोदी का चेहरा तो अटल के साथ भूपेश का !

लोकसभा चुनाव । नजरिया : पत्रकार यशवंत गोहिल

◆ पहले बात करें भाजपा के उम्मीदवार अरुण साव की

बिलासपुर में लोग कह रहे हैं साहू फैक्टर के चलते अरुण साव को टिकट मिला। पर एक बात सोचें…

1. क्या सिर्फ साहू फैक्टर के चलते कोई प्रत्याशी जीत दर्ज कर लेगा या…
चूंकि एक बड़ा वोट बैंक इस वर्ग से आता है, इसलिए अरुण साव ज्यादा मुनासिब हैं।

2. क्या भाजपा में भितरघात की आशंका(कांग्रेस के लिए संभावना) ज्यादा नहीं दिख रही, क्योंकि..

● जिनका टिकट कटा है, उन्होंने एक लाख से ज्यादा वोट से जीत दर्ज की थी…

● जिन्होंने वह जीत दिलाई थी, वो विधानसभा चुनाव में हार गए हैं। निश्चित ही दोबारा उन पर दबाव होगा, कि नए प्रत्याशी को जिताएं, मगर हवा वैसी नहीं है।

● क्या भाजपा के पूर्व अध्यक्ष के कैंडिडेट के नाम पर मुहर न लगने का मलाल नहीं होगा?

● कई और भी हैं, जो भितरघात करेंगे, क्योंकि विधानसभा की हार में भितरघातियों का बड़ा रोल रहा।

3. अरूण साव की राजनीतिक जमीन इतिहास में होगी, लेकिन वर्तमान उससे अनजान है…इस पर

● लोग ये सवाल करेंगे कि तब लखनलाल साहू को भी कौन जानता था? लेकिन…
ये न भूलें, कि उस वक्त की मोदी लहर और आज की मोदी लहर में अंतर है। आज भी नरेंद्र मोदी के नाम पर ही वोट पड़ेंगे, पर क्या उतना असर होगा, इसमें थोड़ी आशंका है।

● अरुण साव के लिए कार्यकर्ता कितना जोर लगाएगा, अहम बात ये है, क्योंकि पिछले कई सालों से शिकायत यही तो रही है कि कार्यकर्ता नाराज हैं। अरुण साव का नाम आने से शायद इसलिए थोड़ी राहत हो सकती है कि कम से कम अपने लोगों को तो टिकट नहीं दी…

…तो अगर अरुण साव सिर्फ इस कारण उतरेंगे कि वे साहू समाज को साधकर बिलासपुर जीत लेंगे, तो क्या ये कुछ अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं लगता। बेशक आठ विधानसभा में मुंगेली में पारिवारिक पृष्ठभूमि के नाते उनका दखल है। बिलासपुर में भी उनका घर है, लेकिन बिल्हा, तखतपुर, बेलतरा इत्यादि इलाकों में भी ओबीसी खासी संख्या में हैं। इसके अलावा अनुसूचित जाति वर्ग का वोट भी मायने रखता है।

माना ओबीसी वोट बहुतायत में हैं, पर ये सारे के सारे सिर्फ इसलिए नहीं पलटेंगे क्योंकि साव को टिकट मिली है। साहू और साव में थोड़ा अंतर है। वैसे ही जैसे राठौड़ में। ये सभी एक ही समाज में हैं, पर फर्क पड़ ही जाता है।

बावजूद इसके साव का राजनीतिक वजन दिखेगा ..क्योंकि

● उनकी छवि को लेकर कोई भी प्रश्नचिन्ह नहीं है।

● संघ का पूरा समर्थन, पार्टी का पूरी तरह कह नहीं सकते।

● कानून के जानकार पूर्व उप महाधिवक्ता रह चुके हैं।

● भारतीय जनता पार्टी का बिलासपुर में वर्चस्व रहा है। एक स्वाभाविक वोट बैंक यहां का बन चुका है।

● जाहिर तौर पर इस बार भी नाम अरुण साव का है, लेकिन चेहरा नरेंद्र मोदी हैं।

● ऊपर से पार्टी अरुण को जिताने की जिम्मेदारी जिस नेता को देंगे, उन्हें अपनी नींद खराब करनी होगी क्योंकि उनका भविष्य इस जीत-हार पर भी निर्भर करेगा। जाहिर है छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के परिणाम के बाद जो टिकट बंटे हैं, उसमें कुछ बड़े फैसले केंद्रीय नेतृत्व के साफ झलकते हैं।

◆ भाजपा इन मुद्दों को उठाएगी…

1. राज्य में सरकार बनने के बाद बढ़ी गुंडागर्दी
2. नई सरकार ने ट्रांसफर को उद्योग की तरह बढ़ावा दिया
3. नई सरकार ने जमकर वसूली की और कर रही है
4. आपराधिक घटनाएं बढ़ रहे हैं बिलासपुर में
5. शांति व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं
6. कांग्रेस के विधायक का अपमान। जो अपने विधायक के न हो सके, वो जनता के कैसे होंगे
7. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश की सुरक्षा
8. एक बार फिर मोदी को प्रधानमंत्री बनाना है.
9. राहुल और प्रियंका से जुड़ा परिवारवाद
10.भाजपाशासन और कांग्रेसशासन की तुलना।

◆◆ अब बात करें अटल श्रीवास्तव की

1. कोई शक नहीं है कि भूपेश सरकार में अटल श्रीवास्तव मौजूदा दौर में अरुण साव से ज्यादा प्रभावी हैं, लेकिन उनका नाम सिर्फ बिलासपुर और बेलतरा सीट के आसपास ही ज्यादा प्रभावी है। बाकी क्षेत्रों में उन्हें पहचान का संकट है। विधानसभा चुनावों के दौरान शायद दूर की सोचकर ही उन्हें लोकसभा का प्रभारी बनाया गया हो और इस बीच उन्होंने काफी मेहनत कर ली हो, तो इस मामले में वे अरुण साव से आगे निकल सकते हैं।

2. चूंकि विधानसभा चुनावों में बिलासपुर ही एक ऐसा जिला है, जहां कांग्रेस को भाजपा से पीछे रहना पड़ा। मस्तूरी, बिल्हा, बेलतरा में भाजपा ने बाजी मारी, तो लोरमी, कोटा और मरवाही में जोगी कांग्रेस का दबदबा रहा। कांग्रेस सिर्फ बिलासपुर और तखतपुर जीती। अब लोकसभा की हैसियत से बात करें, तो मरवाही कोरबा क्षेत्र में आता है, पर बाकी विधानसभा सीटों में कांग्रेस कमजोर रही।

फिर भी…इसी कारण कांग्रेस से अटल इसलिए दिख रहे हैं वजनदार…

● कांग्रेस सरकार बनने के बाद उनकी भूमिका प्रभावी मानी जाती है। क्षेत्र में संगठन का काम भले ही विजय केशरवानी और नरेंद्र बोलर ने संभाला, लेकिन अटल को सीधे तौर पर मुख्यमंत्री का कैंडिडेट माना जा रहा है।

ऐसे में…
कांग्रेस में भी अगर ऐसा कोई उम्मीदवार बैठा हो, जो ये सोच रहा हो कि वह भितरघात करेगा, तो उसके भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है।

दूसरा , बूथ स्तर तक विधानसभा चुनावों की हुई तैयारी का फायदा मिलेगा। भले ही विधानसभा में प्रदर्शन न कर पाए, लेकिन संरचनात्मक ढांचे का अलग महत्व होता है।

3. ये जरूर है कि साहू समाज के वोट के बड़े डैमेज का खतरा उन पर रहेगा, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के चुनावी दौरे इसका बड़ा जवाब हो सकते हैं।

क्योंकि भूपेश बघेल सरकार की कर्जमाफी का प्रभाव उन क्षेत्रों में अधिक है, जहां साहू वोटर्स दिख रहे हैं और वे इनमें ज्यादातर किसान हैं।

और धीरे-धीरे मानसिकता बदलने लगी है। सिर्फ ओबीसी में साहू वोटर्स नहीं हैं। बल्कि अन्य कई समाज भी हैं। इससे यह भावना बढ़ रही है कि सिर्फ साहू को महत्व क्यों? इससे ओबीसी वोट बंट सकता है। पिछले विधानसभा चुनावों में इसका असर दिखा है।

4.भूपेश सरकार के प्रशासनिक फैसलों का भी असर दिखाई देगा यहां के चुनावों पर।

◆ बावजूद इसके …

1. कुछ ऐसे लोग जिनके विषय में कहा जाता है कि वे कभी अटल खेमे के नहीं रहे, हो सकता है वे कांग्रेस में अपनी जमीन बचाने के लिए भितरघात न करें, अगर ऐसा नहीं होता तो ये भी तय है कि वे कोई काम भी नहीं करेंगे।

2. एक सवाल ये भी उठाया जाता रहा है कि पिछले कई विधानसभा चुनावों की क्रिया-प्रतिक्रिया क्या अटल श्रीवास्तव को भुगतनी पड़ सकती है, चाहे बात वाणी राव के संदर्भ में हो या फिर अनिल टाह। बिलासपुर के विधायक शैलेष पांडेय उनके साथ कई बार हंसते हुए नज़र आ चुके हैं, लेकिन दोनों के बीच एक दीवार की चर्चा ने बिलासपुर में अभी दम नहीं तोड़ा है।

◆ कांग्रेस के मुद्दे…

1. न्यूनतम आय गारंटी योजना
2. मोदी हटाओ, देश बचाओ
3. बिलासपुर का रुका हुआ विकास। अरपा और रेललाइन के उस पार व्यवस्थित तरीके से।
4. किसानों की बात, बघेल के साथ।
5. राफेल, नीरव, माल्या, अंबानी, अडानी का जिक्र आता रहेगा चुनावी भाषणों में।
6. बिलासपुर में बदलाव का नारा।
7. भूपेश सरकार के पिछले तीन महीनों का काम।
8. बिलासपुर में स्थित केंद्रीय संस्थानों में स्थानीय बेरोजगारों को नौकरी का मुद्दा।


◆◆ बिलासपुर में लोकसभा चुनाव का इतिहास

1. कांग्रेस सात बार तो भाजपा भी सात बार जीत चुकी है लोकसभा चुनाव।

2. केवल एक बार निर्दलीय प्रत्याशी तो एक बार लोकदल के प्रत्याशी को मिली थी जीत।

3. बिलासपुर लोकसभा का पहला आम चुनाव 1951 में हुआ और दूसरा 1957 में हुआ। दोनों ही बार कांग्रेस के रेशमलाल जीतकर संसद गए।

4. 1962 में कांग्रेस ने निर्दलीय प्रत्याशी सत्यप्रकाश को समर्थन दिया। वे जीते और इसे पार्टी की जीत मानी गई। जनसंघ के प्रत्याशी जमुना प्रसाद हार गए।

5. 1967 में कांग्रेस पार्टी के अमर सिंह ने जनसंघ के मदन लाल के खिलाफ करीबी अंतर से जीत दर्ज की।

6. 1971 के चुनाव में कांग्रेस के राम गोपाल तिवारी ने जनसंघ के मनहरण लाल पांडेय को हराया।

7. 1977 में लोकदल ने निरंजन प्रसाद केशरवानी को टिकट मिली और कांग्रेस के अशोक राव को हारना पड़ा।

8. 1980 तक कांग्रेस दो भागों बंट गई थी। कांग्रेस (आई) के गोदिल प्रसाद अनुरागी ने जीत हासिल की।

9. 1984 के चुनाव में पहली बार गोविंदराम मिरी के रूप में भाजपा ने बिलासपुर सीट में चुनावी राजनीति की शुरूआत की। लेकिन मिरी को कांग्रेस के खेलनराम जांगड़े के खिलाफ करारी हार झेलनी पड़ी।

10. 1989 के चुनाव में भाजपा ने पलटवार किया और पहली बार जीत का स्वाद चखा। रेशमलाल कांग्रेस के खेलनराम को हराकर दिल्ली गए।

11. 1991 में फिर खेलनराम व गोविंदराम मिरी आमने-सामने थे। कांग्रेस ने 1984 की जीत दोहराई।

12. 1996 के चुनाव में भाजपा के पुन्नूलाल मोहले ने कांग्रेस की जीत का रथ रोका। गोदिल प्रसाद अनुरागी की बेटी तान्या अनुरागी को 48615 वोटों से हराकर सीट कांग्रेस से छीनकर भाजपा की झोली में डाल दी।

13. 1998, 1999 और 2004 में लगातार जीत दर्ज की।

14. 2009 में दिलीप सिंह जूदेव ने कांग्रेस की रेणु जोगी को 20081 वोटों से हराया।

15. 2014 के चुनाव में लखनलाल साहू ने करुणा शुक्ला को बड़े अंतर से हराया।

जानिए अपने प्रत्याशियों को..

◆ भाजपा प्रत्याशी का नाम

●अरुण साव●

भाजयुमो के संगठन में रहे। भाजपा के पुराने कार्यकर्ता। पेशे से वकील। स्वच्छ छवि। आरएसएस का सपोर्ट। दादा जनकलाल साव जरहागांव से विधायक रह चुके हैं। पिता स्व. अभय साव सक्रिय राजनीति में रहे। अरुण स्वयं बचपन से आरएसएस में सक्रिय रहे। क्षेत्र में साहू और ओबीसी वोटर्स गेमचेंजर माने जाते हैं। भारतीय जनता पार्टी ने इसी फार्मूले के तहत अरुण साव को मैदान में उतारा है। हाईकोर्ट में पूर्व उप महाधिवक्ता रहे हैं।

◆ कांग्रेस प्रत्याशी का नाम

●अटल श्रीवास्तव●

प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महामंत्री। कांग्रेसियों पर लाठीचार्ज के बाद पूरे देश में छाए। विधानसभा चुनाव में थी दावेदारी, लेकिन ऐन वक्त पर टिकट कटा। संगठन में सक्रिय। बिलासपुर शहर में प्रतिष्ठित नाम। पेशे से सिविल इंजीनियर। साल 2018 में अरपा बचाव पदयात्रा का प्रतिनिधित्व किया। राहुल गांधी की 2015 में किसान पद यात्रा के इंचार्ज थे। छत्तीसगढ़ कांग्रेस के युवा नेताओं में आगे आने वाले सबसे बड़े चेहरों में से एक।

विचार : पत्रकार यशवंत गोहिल

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