मोदी की राह आसान नहीं अग़र इतिहास देखें तो…पर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस भी इसे याद रखे

मोदी की राह आसान नहीं अग़र इतिहास देखें तो…पर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस भी इसे याद रखे

जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी की राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में हार हुई है, वह लोकतंत्र के मायने तो बतलाती ही है, लेकिन इसके साथ ही साथ यह सोचने के लिए भी विवश करती है कि आख़िर यह जनादेश किसके खिलाफ है। ख़ासकर छत्तीसगढ़ में जिस तरह के परिणाम आए हैं, उसकी उम्मीद तो कांग्रेस को भी नहीं थी। कांग्रेस घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष टीएस सिंहदेव और पीसीसी अध्यक्ष भूपेश बघेल ने भी हमेशा 50-52 सीटों की बात कही, लेकिन जब परिणाम आए, तो जनादेश पूरी तरह भाजपा के खिलाफ था। 68 सीटों पर कांग्रेस के विधायक चुने गए। यह बिल्कुल माना जाना चाहिए कि यह कांग्रेस की रणनीति के साथ-साथ जनता की परिपक्वता भी है कि उसने छत्तीसगढ़ में क्लीयर मैंडेड दिया। तो क्या यह मान लिया जाए, कि आने वाले लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार जा रही है…

जिनसे यह सवाल पूछा जाएगा, वे यह जरूर कहेंगे कि राज्यों के चुनाव अलग होते हैं और लोकसभा के चुनाव अलग होते हैं। लेकिन जब पिछली बार छत्तीसगढ़ में रमन सरकार की वापसी हुई थी, तब एक तर्क यह भी दिया गया था, कि यह मोदी लहर का भी नतीजा है।

वरिष्ठ पत्रकार सुजीत नैयर के एक वीडियो पर गौर किया और लगा कि इस पर लिखा जाए। वास्तव में इतिहास बताता है कि जब जब लहर के कारण सरकारें बनी हैं, वह सरकार दोबारा रिपीट नहीं हुई। लहर का सिलसिला 1977 से शुरु हुआ माना जा सकता है। देश में जनादेश इमरजेंसी के खिलाफ आया था। एंटी इमरजेंसी लहर बनी और मोरार जी देसाई की सरकार बनी। इस समय जनता पार्टी की लहर चली और जनता पार्टी को 295 सीट हासिल हुए। वोट शेयर का प्रतिशत था 41.32, इस समय कांग्रेस को मिली थी 154 सीट और वोट शेयर था 34.52। चौधरी चरण सिंह और मोरारजी देसाई की लड़ाई में यह सरकार पूरी नहीं चल पाई और इंदिरा गांधी 1980 में फिर से प्रधानमंत्री बनीं।

देश में दूसरी लहर चली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी और कांग्रेस के पक्ष में जो लहर बनीं। इसने देश में ऐसा माहौल बनाया कि कांग्रेस की 404 सीट आई 49.1 प्रतिशत वोट शेयर के साथ। भाजपा तब 2 सीटों पर सिमटी वोट शेयर था 1.83 प्रतिशत। लोकदल को मिली 3 सीट 5.97 वोट शेयर। जनता पार्टी की 10 सीट वोट शेयर 6.89। राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने।

इसके बाद देश में तीसरी लहर चली 21 मई 1991, श्रीपेरंबदुर में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में 1991 में। कांग्रेस को 244 सीट मिली 35.66 प्रतिशत वोट शेयर। भाजपा 120 सीट 20.04 फीसदी वोट शेयर। नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने।

और इसके बाद एक लहर और चली 2014 में। मोदी लहर। मोदी लहर जिस तरह से चली, उसने देश में भारतीय जनता पार्टी का ऐसा परचम लहराया, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था। 19 राज्यों में सरकार आने को मोदी-शाह की जोड़ी की सफलता बताया गया। इस लहर में भाजपा को मिली 282 सीट 31.34 प्रतिशत वोट शेयर के साथ। कांग्रेस को 44 सीट 19.52 फीसदी वोट शेयर के साथ।

अब बात करें कि लहर और सत्ता के बीच संबंध क्या हैं? गौर से देखें तो पता चलता है कि जब जब किसी लहर में पार्टी ने सत्ता हासिल की है, वह या तो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई, या फिर अगली बार के लिए चुनी नहीं गई। 1977 में मोरार जी देसाई और चौधरी चरण सिंह की लड़ाई में सत्ता गंवानी पड़ी। 1984 की लहर में राजीव गांधी ने जो ऐतिहासिक बहुमत हासिल किया था, वह अगली बार अपनी सरकार नहीं बचा पाए और 1989 में जनता दल से अगले प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह बने। ऐसे ही 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद संवेदना की जो लहर पैदा हुई, उसमें नरसिंह राव प्रधानमंत्री तो जरूर बने, लेकिन अगली दफा कांग्रेस को जनता ने नकार दिया और देश के अगले प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी। इसके बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2014 में जो जनादेश मिला था, क्या वह कायम रह पाएगा? यह सवाल उठना इसलिए लाजिमी है क्योंकि हाल में तीनों राज्यों की सरकार में जिस तरह से जनता ने भाजपा को सत्ता से उतारा है, उसका इशारा कहीं न कहीं आने वाले वक्त में लोकसभा चुनाव की तरफ भी जाता है। क्या होगा यह कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन लहर का इतिहास सत्ताधारी पार्टी के लिए शुभ नहीं रहा है। वैसे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को भी इस बात का ध्यान रखकर पांच साल काम करना चाहिए या अपने काम की शुरुआत करनी चाहिए कि जो जनादेश उसे मिला है, उसकी लोकप्रियता में गिरावट न आए। क्योंकि जब जनादेश बड़ा होता है, तो अपेक्षाएं भी बड़ी ही होती हैं।

-पत्रकार यशवंत गोहिल के फ़ेसबुक वॉल से

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