ख़ाक में मिला के मुझे, क्या मिला तुझे
अब तो डरने का मन नहीं करता, दर भी उन हैवानों को देख कर दूर हो गया है।
आज हम महिला स्सक्तिकरण की बात करते हैं तो शर्म आती है झूठ बोलने में, हस्सी आती है जब किसी महिला की कमियाबी सुनते है, क्या होगा इतना पढ़ के , इतना खेल के, देश के लिए जी जान लगाकर, आखिर में नोच ही देंगे तुम्हे, अपनी हवस मिटा के – जला देंगे शरीर को आत्मा को। आज कल समाचार पत्र में , टीवी पर यह इसके साथ दुष्कर्म हो, तो वहा उसके साथ। कुछ केस तो पता ही नहीं क्युकी।सम में बदनामी का दर है , इज्जत का पूरा ठेका हमारे कंधे पर है। हम।अपनी इज्जत डक -डाक कर रखनी चाहिए पर फिर भी जो कपड़ों के अंदर तक झांकने वाली नीच और घटिया आंखे है, उनका हम क्या करे?
ज़िम्मेदार!! कौन है ऐसी दुष्कर्म का जिम्मेदार कैसे कोई इतना निर्दय हो सकता है?? क्या महिलाओं का कुसूर है कि वो अपने मन के कपड़े पहनती है, आगे पढ़ती है, कुछ बनना चाहती है। जो बिना किसी के नुकसान पहुंचाए समाज में अपनी जगह बनना चाहती है। या शायद पुरुष ज़िम्मेदार है , महिलाओं को प्रोत्सहित करते है, सपोर्ट करते है, उंगली उठाते है, चेहरे से लेकर पहनावे तक पूरी रिपोर्ट तैयार करते है। या फिर शायद सरकार ज़िम्मेदार है, सत्ता में बैठे लोग अपने लिए बिल आते है, संविधान में संशोधन करते है पर जब इन जानवरों की बात आती है तो चुप हो जाते है, अगर आप देश की बेटी की कमियाबी की बधाई देकर देश के साथ जोड़ते है को इससे भी देश की घटिया मानसिकता के साथ जोड़कर देखिए तो शर्म आएगी।
सिर्फ हैदराबाद नहीं सारे भारत में हर उम्र की बचिया चाहे वो ,4 साल की हो या 14 या फिर कॉलेज वाली या शादी सुधा या भी बुज़ुर्ग महिला , सब कोई दर कर रह रहा। प्रियंका रेड्डी – नाम कैसे पता हमें , कानूनी तौर पे आप पीड़िता का नाम या ऐड्रेस नहीं बता सकते पर ,हर न्यूज चैनल , मीडिया , नेता नाम के साथ वीडियो बना कर, गाने बजा रहे । बस यही कदम है इनका इस कुकर्म के प्रति। प्रॉन्न साइट में प्रियंका रेड्डी नाम हाईलाइट हो रहा – क्यों लोगो को देखना है कि कैसे वो चिल्लाई ,कैसे तादपी बस करो अब तो इंसान बनो , जानवर भी कहना बेजुबान जानवर को गली होगी।
कड़े से कड़े कानून होना चाहिए, कोई बालिक नहीं, दोषी तो बस दोषी ही है। जो हैवानियत कर सकता है वो मानसिक तौर से समाज के लिए कलंक है। ऐसा लॉ, ऐसा कानून हो की कोई 10 बार नई 1000 बार सोचे , ताकि आसमान में उड़ाते शोन चिड़िया को कोई चोट ना पहुंचाए।
पब्लिक लाबिंग , पब्लिक लाइंचिंग जरूरी है इन दरिंदो की, सड़क पर पीटेंगे पर पता चलेगा की दर्द क्या होता है। कठोर नहीं बनेंगे तो समाज के लिए कचरा बचोरेंगे और सड़ेगा फिर देश , हम और आप भी। आज उसकी बारी थी, क्या कल मेरी? क्या परसो आपकी?
सोचिए अगर ज़मीर जग्गे तो उठिए वरना अपनी बरी का इंतज़ार कीजिए।
शायद हमें जलना पसंद है पर लड़ना नहीं।
- भूमि सिंह