मौन की आवाज सुनाने की कोशिश में खेमे…

सबसे पहले एक शेर

नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है …

भूपेश बघेल समर्थक 17 विधायक एक बार फिर दिल्ली पहुंच गए। 8 विधायकों के गुरुवार को जाने की संभावना है। ऐसे समय में जो पंजाब कांग्रेस में उथल-पुथल मची है, राजस्थान में गाहे-बगाहे सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच मनमुटाव की खबरें आ रही हैं, छत्तीसगढ़ में ढाई ढाई साल का विवाद थमा नहीं हो, एक बार फिर एक खेमे के विधायकों का दिल्ली जाना दबाव की राजनीति का एक और पन्ना है। दिल्ली जाने के बाद सारे विधायक यह कह रहे हैं कि वे अपने निजी दौरे पर दिल्ली गए हैं। प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया कह रहे हैं कि किसी विधायक से मिलने का कोई कार्यक्रम नहीं है। ऐसे में इन कहीं ना कहीं भूपेश खेमा दिल्ली को यह संदेश देना चाहता है कि छत्तीसगढ़ में पंजाब जैसी स्थिति उत्पन्न न होने दी जाए। विधायक किसी से न भी मिले तो भी मीडिया में इतने विधायकों का दिल्ली जाना सुर्खियां बटोरेगा ही। लिहाजा, बदलाव की चर्चा को एक बार फिर हवा मिलेगी। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव लगातार दिल्ली जा रहे थे और सुर्खियां बटोर रहे थे। हालांकि यह उनका निजी दौरा होता था। भूपेश समर्थक विधायक ठीक उसी तरह एक मेंटल गेम खेल रहे हैं। एक साथ करीब 25 विधायकों का दिल्ली में निजी काम निकल आए, ऐसा कम ही होता है। और इन विधायकों के जाने के बाद स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का यह कहना कि बदलाव की चर्चा अब सार्वजनिक है, इस चर्चा को भड़काता ही है। दोनों खेमे मौन की आवाज सुनाने की कोशिश में लगे हैं।
विधायक बृहस्पति सिंह के नेतृत्व में दिल्ली गए हैं और यह कह रहे हैं सबका निजी दौरा है। दोनों बातें एक साथ कैसे हो सकती है? सिंहदेव खेमा हर महीने सियासी बाजार में एक नई तारीख उछालता है। वह बदलाव के प्रति इतना ज्यादा आश्वस्त है कि जैसे उन्हें कहा गया है तैयारी रखें। जाहिर तौर पर सिंहदेव खेमा भी चर्चा को कम नहीं होने देना चाहेगा और इसके लिए रणनीतिक रूप से मीडिया का बेहतर इस्तेमाल किया जा रहा है। पंजाब और राजस्थान में मची उथल-पुथल को देखते हुए इस समय पर कांग्रेस अपने तीसरे मजबूत घर छत्तीसगढ़ की ईंटें कमजोर नहीं करना चाहेगी और चाहेगी कि फिलहाल बदलाव की चर्चा को टाला जाए। ऐसे में सिंहदेव खेमे के लिए लगातार सुर्खियां जरूरी हैं।
लेकिन इस समय भूपेश खेमे के विधायकों का दिल्ली जाना आलाकमान को सोचने पर मजबूर करेगा। बृहस्पत सिंह और बाकी विधायक कांग्रेस की अस्थिरता के समय दिल्ली में परेड कर रहे हैं। यानी संदेश यह कि पंजाब की तरह यहां कोई फैसला ना लिया जाए।
क्या बृहस्पति सिंह इतने ताकतवर हैं कि वह 24 विधायकों को दिल्ली ले जा सके? विधानसभा सत्र के समय भी बृहस्पत सिंह टीएस सिंहदेव के खिलाफ बयान दे चुके हैं और उनके समर्थन में 50 से ज्यादा विधायक दिखाई दिए थे। यानि अगर वे इतने ताकतवर हैं, तो सीएम के लिए तो उन्हीं का नाम सामने आ जाना चाहिए था, पर वो तो कैबिनेट में मंत्री तक नहीं। अन्य कोई पद हो, तो उसकी जानकारी नहीं। इससे उनके कद का अंदाजा लगाया जा सकता है। जाहिर तौर पर इस बार भी 25 विधायकों को साथ लेकर जाना अनायास नहीं हो सकता और निजी नहीं हो सकता। प्री प्लांड है। बृहस्पत सिंह का कद छत्तीसगढ़ की राजनीति में अभी इतना बड़ा नहीं कि उनके पीछे 50 और 25 विधायक किसी भी समय खड़े हों। उनकी डोर किसी और के हाथ में है। अब दिल्ली आने जाने वाले नेताओं पर मीडिया की नजर तब तक बनी रहेगी, जब तक कांग्रेस के आलाकमान की तरफ से एक साफ सुथरा बयान या फैसला जारी नहीं हो जाता। कांग्रेस के बड़े और बुजुर्ग नेता इस समय इसी कारण खफा खफा हैं कि फैसले सही नहीं हो रहे, समय पर नहीं हो रहे। कपिल सिब्बल का यह कहना कि कांग्रेस में अभी कोई अध्यक्ष नहीं है, संगठन के भीतर चल रही उहापोह को साफ दर्शाता है। अनिर्णय की स्थिति से राजनीतिक अस्थिरता का भाव छत्तीसगढ़ में घर करता जा रहा है। जिस पार्टी के 70 विधायक हों और उसमें अस्थिरता हो, तो प्रशासन भी असमंजस की स्थिति में होता है। छत्तीसगढ़ में यह असमंजसता दिख रही है।

एक सवाल और है? इन दो खेमों के अलावा क्या कोई तीसरा खेमा भी है जो कास्ट फैक्टर के नाम पर समीकरण में खुद को फिट बैठाने पर बहुत धीरे-धीरे काम कर रहा है? बिना किसी विवाद के, बिना किसी चर्चा के अपना नाम प्रासंगिक कर रहा है?

बहरहाल, पिक्चर अभी बाकी है..

To be continued…..

यशवंत गोहिल जी के फ़ेसबुक से सभार

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