युवा अधिवक्ता रोहित शर्मा ने 82% आरक्षण के विरुद्ध पैरवी की और अपना अनुभव साझा किया

आज आरक्षण को 82 % किये जाने के विरूध लगाई गई याचिका पर अंतरिम राहत देते हुए माननीय उच्च न्यायालय ने obc श्रेणी के आरक्षण को 14 से बड़ाकर 27 प्रतिशत करने के क्रियान्वन पर रोक लगा दी है । वही आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिये 10 प्रतिशत की सीमा मे दिये गए आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट मे समान विषय लंबित होने का हवाला देते हुए टिप्पणि से इन्कार किया है । वास्तविकत रुप से आज का निर्णय बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान मे दिये समता और समानता के अधिकार के अतिक्रमण को रोकने मे ही मिल का पत्थर साबित होगा।

माननीय न्यायालय के द्वारा इस बात का अवलोकन भी किया गया की 2012 मे 50 % की आरक्षण की सीमा 58 % की गई थी, जो विवद्यक उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है, और ऐसी परिस्थिति मे वापस 58 % से बड़ाकर 82 % कर देना न्याय योचित नही है।

माननीय न्यायालय ने बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान सभा मे दिये उदबोधन खास कर प्रारुप सांविधान के अनुच्छेद 10 वा वर्तमान संविधान के अनुच्छेद 16 मे समता और समानता के अधिकर पर अत्यधिक आरक्षण के परिलक्षित होने पर समता और समानता का परिहास होना निश्चित है, इस तथ्य का संज्ञान लिया है। पर वास्तविक रुप से ये लडाई एक अधिवक्ता के रुप मे एक नया ज्ञान सरीखी प्राप्त हुई । जिरह के दौरान वा राज्य शासन के तर्को का खंडन करने के दौरान, मुझे मेरे सीनियर श्री निर्मल शुक्ला जी का मार्गदर्शन वा सानिध्य प्राप्त हुआ जो शायद मेरे पुरे अधिवक्ता जीवन मे इससे ज्यादा सम्मोहक पल नही हो सकता। उनकी शालीनता वा उनका धैर्य मेरे जीवन के मूल्यो को संवर्धित करने मे आधार स्तम्भ साबित होगा। साथ ही  एक तथ्य जो मैं आज इस शब्द को उकेरीत करते हुए लिखना चाह्ता हूँ वो यह की छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय मे जितनी प्रतिभा और खास तौर पे युवा अधिवक्ता मे देखने को जो ललक मिलती है उसका कोई दुसरा पर्याय नही है ।

इस विषय मे जिरह के दौरान मुझे एक ऐसे युवा अधिवक्ता को सुनंने का मौका मिला जिसने बखूबी राज्य शासन के सारे तथ्यों को उनकी ही सरकार के सांख्यिकी विभाग के आकड़ों से धराशाही कर दिया। इस अधिवक्ता को हम अनीश तिवारी के नाम से जानते है, और मेरे मत मे अपने शब्दो को और विधि के सारगर्भित आलेख को एक धागे मे पिरोने की जो कला नानी पालखिवाला मे थी वही तेज इस युवा अधिवक्ता मे परिलक्षित होता है। दुसरे क्रम मे उम्र मे छोटे पर अपनी कर्मशीलता से अच्छे अच्छे उम्रदराज अधिवक्ता को मात देने मे सक्षम युवा अधिवक्ता पलाश तिवारी की लेखन शैली वा अपने तथ्यो को न्याय निर्यण के अकाट्य तर्क से सुशोभित करने की अदम्य साहस इस युवा मे कुट कुट कर भरी है। इस बात का अहसास की किसी पिता को उसके पुत्र के सफल होने से किस गर्व का अनुभव होता है, वह मुझे हमारे सीनियर प्रकाश तिवारी जी को अपने पुत्र पलाश को जिरह करते देख सीना चौड़ा देखकर रोमांचित अनुभव हुआ। वही युवा अधिवक्ता निशिकंत सिन्हा ने बहुत ही सारगर्भित विचार कम शब्दो मे कैसे संसार लिखा जा सकता है इसकी सिख मुझे दी। उनमे एक गजब का धैर्य देखने को मिला जो इस उम्र मे यदा कदा ही होता है। विधि के पारंगत वक्ता के रुप मे बड़े भाई वा मार्गदर्शक के रुप मे प्रतिक शर्मा भैया, शैलेंद्र शुक्ला भैया, रमाकान्त पानडेय जी, सन्तोष भारत जी, एवं साथी अनिमेष वर्मा, प्रकृती जैन, अतुल केशरवानी, कृष्णराज मिश्रा के सम्मिलित प्रयास से आज का निर्णय प्राप्त हो सका वा ये सभी युवा अधिवक्ता छत्तीसगढ़ के न्याय पटल के उभरते सितारे है।

अंत मे विषेश रुप से मेरे परम मित्र वा भाई वैभव शुक्ला को हृदय से आभार की उन्होने चर्चा के दौरान बिना लाग लपेट के जूनियर लॉयर को प्रोत्साहित करने वा स्वयं के उत्कृष्ट ज्ञान को शब्द संग्रह कर सिमित वक्तव्य रख सबको उचित समय नियोजित करने मे महती भुमिका निभाई । मुझे श्रेय देने वाले सभी हित वा शुभचिंतको को पुन: साभार एवं मेरी टीम मे मेरे जूनियर वतन साहु एवं रश्मीत जोहल को उनके अथक प्रयास वा समर्पण हेतु आशीष वा उनके उज्वल भविष्य की शुभकामना। आशा है हम सभी युवा अधिवक्ता हमारे उच्च न्यायालय के हमारे पालक वा मार्गदर्शक सीनियर निर्मल शुक्ला जी के सानिध्य मे विधि के विभिन्न कलेवरो को जान समझ सकेंगे ।

राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्री विजय हँसारिया जी, मनोज कुमार सिन्हा जी एवं भाई विक्रम शर्मा के तर्क, विधि के सिध्दांतों का विवेचन भी मुझे मेरे अल्प ज्ञान को बड़ाने में बहुत ही प्रभावशाली वा उपयोगी हैं

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