हंगर फ़्री समाजिक संस्था ने दैनिक समाचार पत्र खबर देखा और पहुँच गए माँझी जनजाति के आदिवासियो को मदद की

कोरोना जैसी इस वैश्विक महामारी में जहां सभी समाजिक संस्था शहर में हर संभव मदद कर रही है जिस में फंसे मजदूर, रोजी मजदूरी करने वाले मजदूर छात्र छात्राएं जिनको हर तरह की सुविधाएं प्राप्त हो रही है लेकिन ऐसा देखा गया कि शहर के आसपास विभिन्न ऐसे गांव जहां इस महामारी में पूरी रोजगार बंद हो गई सभी की रोजी मजदूरी बंद हो गई और इन सबके बीच देखा गया कि उनको राशन तो मिला चावल के रूप में किंतु साथ में खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला कुछ ऐसे भी गांव मिले जहां राशन मिला और ना ही अन्य सुविधाएं मिली क्योंकि कोरोना जैसी महामारी होने की वजह से पूरा काम बंद है लोग कुछ कर नहीं पा रहे हैं और इन सब की वजह से कुछ ऐसे ही गांव भुखमरी के कगार में आ चुके है जी हां ऐसा ही एक गांव न्यायधानी से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नवापारा जहां मांझी जनजाति के आदिवासी निवास करते हैं जिनका मुख्य कार्य सुपा, टोकनी बनाना है जिनकी बिक्री शादी के समय होता है किंतु कोरोना होने के कारण वैवाहिक कार्यक्रम नहीं हो पा रहे इन सबके बीच देखा गया कि उन्हें खाने के लिए भी लाले पड़ रहे हैं 18 मई को एक दैनिक समाचार पत्र में खबर छपी और इसको संज्ञान में लेकर उसका निरीक्षण किया, इस विकट परिस्थिति को देखते हुवे हंगर फ्री बिलासपुर समाजिक संस्था ने इसको संज्ञान में लेते हुवे गांव में जाकर लगभग 50 परिवार को राशन जिसमें चावल आलू प्याज 70 जोड़ी चप्पल सभी बच्चों को खाने के लिए बिस्किट तेज गर्मी से बचने के लिए उन्हें ग्लूकोस, एवम इलेक्ट्रॉल का वितरण किया जिसमे प्रमुख रुप से बी प्रमिला, चुन्नी मौर्य, सौम्य रंजीता, नीरज गेमनानी, चन्द्रकान्त साहू, मनीष पाटनवार,विशाल तम्बोली एवं प्रकाश झा शामिल है

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