महाशिवरात्रि भगवान शिव की आराधना का मुख्य त्योहार ; जानिए इससे जुड़ी कथा

महाशिवरात्रि को भगवान शिव की आराधना का मुख्य त्योहार माना जाता है। शिव को महाशिवरात्रि बहुत प्रिय है। शिवपुराण के ईशान संहिता के अनुसार, इस दिन ही शिव करोड़ों सूर्य के समान प्रभाव वाले रूप में अवतरित हुए थे। मान्यता है कि इसी दिन उनका और माता पार्वती का विवाह भी हुआ था। शिव का आर्शीवाद पाने के लिए भक्त व्रत भी रखते हैं। महाशिवरात्रि पर व्रत रखने का एक अलग ही महत्व है।

शिवरात्रि तो हर महीने में आती है लेकिन महाशिवरात्रि सालभर में एकबार आती है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह पर्व आज 4 मार्च सोमवार को है। महाशिवरात्रि का महत्व इसलिए है क्योंकि यह शिव और शक्ति की मिलन की रात है। आध्यात्मिक रूप से इसे प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात के रूप में बताया जाता है। शिवभक्त इस दिन व्रत रखकर अपने आराध्य का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंदिरों में जलाभिषेक का कार्यक्रम दिन भर चलता है।

महाशिवरात्रि से जुड़ी कथा

महाशिवरात्रि के दिन शिवभक्त बड़े धूमधाम से शिव की पूजा करते हैं । भक्त मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाकर पूजन करते हैं। साथ ही लोग उपवास तथा रात को जागरण करते हैं। शिवलिंग पर बेल-पत्र चढ़ाना, उपवास तथा रात्रि जागरण करना एक विशेष कर्म की ओर इशारा करता है। यह माना जाता है कि इस दिन शिव का विवाह हुआ था, इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है।

वास्तव में शिवरात्रि का परम पर्व स्वयं परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की याद दिलाता है। इस व्रत को सभी कर सकते हैं। इस व्रत के विधान में सवेरे स्नानादि से निवृत्त होकर उपवास रखा जाता है।

शिवरात्रि पर सच्चा उपवास यही है कि हम परमात्मा शिव से बुद्ध‍ि योग लगाकर उनके समीप रहे। उपवास का अर्थ ही है समीप रहना। जागरण का सच्चा अर्थ भी काम, क्रोध आदि पांच विकारों के वशीभूत होकर अज्ञान रूपी कुम्भकरण की निद्रा में सो जाने से स्वयं को सदा बचाए रखना है।

शिवरात्रि के पर्व पर जागरण का विशेष महत्व है। पौराणिक कथा है कि एक बार पार्वतीजी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’ उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का उपाय बताया ।

चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। अत: ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम शुभफलदायी कहा गया है । वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है । परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है । ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य देव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ कहा गया है। शिव का अर्थ है कल्याण । शिव सबका कल्याण करने वाले हैं । अत: महाशिवरात्रि पर सरल उपाय करने से ही इच्छित सुख की प्राप्ति होती है ।

ज्योतिषीय गणित के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी क्षीणस्थ अवस्था में पहुंच जाते हैं, जिस कारण बलहीन चंद्रमा सृष्टि को ऊर्जा देने में असमर्थ हो जाते हैं । चंद्रमा का सीधा संबंध मन से कहा गया है । अब मन कमजोर होने पर भौतिक संताप प्राणी को घेर लेते हैं तथा विषाद की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे कष्टों का सामना करना पड़ता है । चंद्रमा शिव के मस्तक पर सुशोभित है । इसलिए चंद्रदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का आश्रय लिया जाता है ।

एक कथा यह भी बताती है कि महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है, इसलिए प्राय: ज्योतिषी शिवरात्रि को शिव अराधना कर कष्टों से मुक्ति पाने का सुझाव देते हैं । शिव आदि-अनादि है । सृष्टि के विनाश और पुन:स्थापन के बीच की कड़ी हैं। ज्योतिष में शिव को सुखों का आधार मान कर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने की महत्ता कही गई है ।

पहली बार प्रकट हुए थे शिवजी

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार प्रकट हुए थे। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। ऐसा शिवलिंग जिसका न तो आदि था और न अंत। बताया जाता है कि शिवलिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्माजी हंस के रूप में शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। वह शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग तक पहुंच ही नहीं पाए। दूसरी ओर भगवान विष्णु भी वराह का रूप लेकर शिवलिंग के आधार ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें भी आधार नहीं मिला।

64 जगहों पर प्रकट हुए थे शिवलिंग

एक और कथा यह भी है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग विभिन्न 64 जगहों पर प्रकट हुए थे। उनमें से हमें केवल 12 जगह का नाम पता है। इन्हें हम 12 ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं। महाशिवरात्रि के दिन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में लोग दीपस्तंभ लगाते हैं। दीपस्तंभ इसलिए लगाते हैं ताकि लोग शिवजी के अग्नि वाले अनंत लिंग का अनुभव कर सकें। यह जो मूर्ति है उसका नाम लिंगोभव, यानी जो लिंग से प्रकट हुए थे। ऐसा लिंग जिसकी न तो आदि था और न ही अंत।

कौन रख सकता है महाशिवरात्रि का व्रत

इस व्रत को सभी नर-नारी रख सकते हैं। कहा जाता है कि भोलनाथ जैसे वर की चाह में कुंवारी कन्याएं व्रत रखती हैं। माना जाता है कि उन्हें बहुत अच्छा वर मिलता है। सुहागिन स्त्रियां भी शिवरात्रि के दिन व्रत रखती हैं। ऐसा करने से उनके पति का जीवन और स्वास्थ्य हमेशा अच्छा बना रहता है।

क्यों रखा जाता है व्रत

मान्यता है कि जो भी जातक महाशिवरात्रि का व्रत रखते हैं उन्हें नरक से मुक्ति मिलती है। इस व्रत के करने मात्र से ही सभी तरह के पापों से मुक्ति मिलती है और आत्मा की शुद्धि होती है। ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन जहां-जहां भी शिवलिंग स्थापित है, उस स्थान पर भगवान शिव का स्वयं आगमन होता है। इसलिए शिव की पूजा के साथ शिवलिंग की भी विशेष आराधना करने की परंपरा है। शिव अपने भक्तों को सच्चे दिल से आशीर्वाद देते हैं। महाशिवरात्रि पर व्रत रखने से व्यवसाय में वृद्धि और नौकरी में तरक्की मिलती है। अगले दिन तिल, जौ और खीर आदि का दान देकर व्रत को समाप्त किया जाना चाहिए। जिससे महाशिवरात्रि के व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो सके।

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