हाईकोर्ट ने किया न्याय का प्रतिष्ठान: महिला डॉक्टर को झूठे केस से दिलाया मुक्ति, न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग

बिलासपुर, छत्तीसगढ़।छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट, बिलासपुर ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए डॉ. सुधा, डॉ. रवि शंकर और श्रीमती कुसुमा के खिलाफ दर्ज दो झूठे आपराधिक मामलों को निरस्त कर दिया है। यह निर्णय न केवल न्याय की जीत है, बल्कि उन सभी लोगों के लिए एक मिसाल है जो न्यायिक प्रणाली के दुरुपयोग का शिकार होते हैं।मामले की पृष्ठभूमिशिवानंदनगर थाना क्षेत्र द्वारा डॉ. सुधा, डॉ. रवि शंकर और श्रीमती कुसुमा के खिलाफ वर्ष 2021 एवं 2024 में दो एफआईआर दर्ज की गई थीं, जिनमें भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराएं लगाई गई थीं -धारा 420 (धोखाधड़ी)धारा 467 (जालसाजी की दस्तावेज़)धारा 468 (धोखाधड़ी के लिए कूटरचना)धारा 471 (जाली दस्तावेजों का उपयोग)धारा 120B (आपराधिक षड्यंत्र)परंतु हाईकोर्ट ने पाया कि कोई साक्ष्य या बाकायदा जांच प्रस्तुत हुए बिना यह पूरा मामला स्पष्ट रूप से सिविल प्रकृति का है, जिसमें आपराधिक मामला नहीं बनता।हाईकोर्ट का स्पष्ट आदेश:”इस प्रकरण में प्रथम दृष्टया ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे सिविल प्रकृति के और इस हम प्रकरण में कोई आपराधिक तत्व नहीं पाया जा सका। अतः प्रस्तुत याचिका में हस्तक्षेप करना न्यायहित में है। अतः संबंधित FIR क्रमांक 1103/2021 दिनांक 14.10.2021 एवं FIR क्रमांक 695/2024 दिनांक 05.08.2024 को निरस्त किया जाता है।”डॉ. सुधा को फंसाने की सुनियोजित साजिशडॉ. सुधा, जो पेशेवर चिकित्सक हैं, ईमानदारी और समाज सेवा के लिए जानी जाती हैं, को इस पूरे प्रकरण में सबसे अधिक मानसिक और सामाजिक पीड़ा का सामना करना पड़ा। उन्हें बिना किसी ठोस प्रमाण के गंभीर आपराधिक मामलों में फंसाने की कोशिश की गई और एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे किसी की प्रतिष्ठा ध्वस्त करने के लिए झूठी FIR और दूसरी साजिशें रची जा सकती हैं।न्यायिक प्रणाली का दुरुपयोग, एक खतरनाक प्रवृत्तिजज शरद कुमार ने दिए निर्णय में जिस प्रकार से आपराधिक धाराओं का इस्तेमाल हुआ, वह यह दर्शाता है कि कोई भी व्यक्तिगत हित के लिए न्याय व्यवस्था का दुरुपयोग करने में संकोच नहीं करता। यह वकील निर्देशों का अपमानजनक प्रयोग है, जो निर्दोषों को अनावश्यक कानूनी झमेले में डालता है।डॉ. सुधा का प्रतिकथन:”मैं न्यायालय की आभारी हूँ कि उसने सच्चाई की पहचान और मुझे न्याय दिलाया। मेरे खिलाफ झूठे और दुर्भावनापूर्ण आरोपों का कोई आधार नहीं था। यह निर्णय मेरे जैसे उन सभी के लिए उम्मीद की किरण है जो झूठे मामलों का शिकार होते हैं।”समाज के लिए संदेशयह मामला बताता है कि सत्य चाहे जितनी भी देर से बोले जाए, अंततः सत्य की विजय होती है। न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग न केवल निर्दोषों को परेशान करता है बल्कि मूलभूत मानव अधिकारों पर आघात है। उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय भविष्य में ऐसे दुर्भावनापूर्ण मामलों पर रोक लगाने की दिशा में एक मजबूत कदम है।

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