ये है देश का सबसे बड़ा स्थायी छठ घाट, हजारों लोग एक साथ दिए अर्घ्य “धर्मेंद्र दास”

दिवाली के छह दिन बाद मनाए जाने वाले छठ पर्व का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है और इस व्रत को करते हुए सूर्य देव व षष्ठी देवी की आराधना कठोर व्रत करते हुए की जाती है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं सुख-समृद्धि व परिवार की खुशहाली के लिए कामना करती हैं ।

छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है । इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। इस व्रत की महिमा समय के साथ बढ़ती जा रही है। छठ व्रत एक समय में बिहार व कुछ क्षेत्रों में विशेष रूप से रखा जाता था लेकिन अब बहुत जगहों पर छठ पूजा की जाती है।

सूर्य उपासना का पावन पर्व छठ मुख्य रूप से बिहार प्रांत का पर्व है । परंतु यह पर्व बिहार प्रांत के साथ-साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई वाले इलाके के निवासी धूमधाम से मनाते हैं। पिछले कुछ दशकों से इन राज्यों से पलायन होने के कारण देश के जिस किसी हिस्से में बिहार,झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग रहते हैं ,वहां बड़े ही धूमधाम के साथ छठ पर्व का आयोजन किया जाता है । प्रवासियों के साथ-साथ स्थानीय लोगों की भी आस्था इस पर्व के साथ जुड़ती चली जा रही है ।

छठ पर्व मनाने में घाटों का विशेष महत्व

छठ पर्व मनाने में घाटों,नदियां या तालाब के घाटों का विशेष महत्व है । ऐसे में छठ घाट का जिक्र होना भी लाजमी है ।अगर हम पूरे देश में एरिया के बतौर सबसे बड़ा घाट देखें तो वह मुंबई के जुहू का चौपाटी है,परंतु यह अस्थाई घाट है । आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि देश में सबसे बड़ा स्थाई और पूर्ण रूप से व्यवस्थित घाट बिलासपुर शहर के तोरवा स्थित अरपा नदी पर है । यह छठ घाट लगभग साढ़े 7 एकड़ में फैला हुआ है ,जहां एक साथ लगभग 50 हजार व्रती अर्ध्य देने पहुंचते हैं । इतना बड़ा घाट तो छठ पर्व के उद्गम स्थल बिहार में भी नहीं है । छठ पूजा के लिए बिहार में लगभग सैकड़ों घाट हैं परंतु सभी घाटों का एरिया महज 100 से 200 मीटर ही है ।
तोरवा छठ घाट में लगभग एक किलोमीटर एरिया में पूजा व अर्ध्य के लिए बेदी बनाई जाती है । यहां स्थाई रूप से लाइटिंग, पार्किंग स्थल, सामुदायिक भवन , तथा गार्डन के साथ ही बगल में ही पुलिस चौकी भी है ।तोरवा छठ घाट में लगभग 50 हज़ार से अधिक श्रद्धालु सूर्य देव को अर्ध्य दे सकते हैं ।

व्रत के नियमों का पालन करना जरूरी

छठ व्रत एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्राय: महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है।
चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है।

इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं, पर व्रती ऐसे कपड़े पहनते हैं जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ पूजा करते हैं।

शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालों साल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए।

नहाय खाय

पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी नहाय-खाए के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र बना लिया जाता है।
इसके बाद छठ व्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं।भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।

खरना

दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रत धारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को आमंत्रित किया जाता है।

प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

संध्या अघ्र्य

तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ बनाते है जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं। इसके अलावा चावल के लड्डू बनाए जाते है, जिसे लडुआ भी कहा जाता है।

इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है। शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बास की टोकरी में अघ्र्य का सूप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं।

सभी छठ व्रती एक नियत तालाब या नदी किनारे इकठ्ठा होकर सामूहिक रूप से अघ्र्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अघ्र्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूपा से पूजा की जाती है।

पारण के साथ समापन

छठ पूजा व्रत का अंतिम दिन कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी को पड़ता है । इसमें व्रत रखने वाले लोग सूर्योदय से पहले उसी नदी या तालाब में जाकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं जहां उन्होंने बीती शाम को दिया था। पूर्व संध्या की तरह प्रातः काल भी वही रस्में की जाती है । इसके बाद व्रत धारक घर के पास पीपल के पेड़ की पूजा करते हैं । पूजा के बाद व्रतधारक कच्चे दूध का शरबत एवं थोड़ा प्रसाद ग्रहण कर अपना व्रत पूर्ण करते हैं । इस प्रक्रिया को पारण कहते हैं ।

देश के प्रमुख बड़े छठ घाटों पर एक नजर

घाट स्थल एरिया

  1. जुहू चौपाटी मुम्बई असीमित
  2. तोरवा छठ घाट बिलासपुर साढ़े सात एकड़
  3. पाटलिपुत्रा घाट पटना 150 मीटर
  4. बंका घाट पटना 100 मीटर
  5. हाजीपुर घाट 200 मीटर
  6. अखाड़ा घाट मुजफ्फपुर 200 मीटर

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