बिलासपुर ,रायपुर-बिलासपुर हाईवे के दोनों ओर करीब 30 किलोमीटर में फैली है बिल्हा विधानसभा। यहां पिछड़े आदिवासी गांव हैं तो चमचमाती सड़कों और शापिंग काम्पलेक्स वाले शहरी क्षेत्र भी आते हैं। यहां सिरगिट्टी, तिफरा जैसे इंडस्ट्रीज इलाके हैं तो यदुनंदन नगर से लेकर चकरभाठा तक कई बड़ी कॉलोनियां भी आती है। मुंगेली जिले का पथरिया, सरगांव भी इसी विधानसभा में है। इतने अलग-अलग तरीके की आबादी को अपने में समेटे बिल्हा में मुद्दे, समस्याएं, शिकायतें भी अलग अलग है।
छत्तीसगढ़ के बिल्हा विधानसभा ऐसी इकलौती सीट है, जो दो जिलों के नक्शे में शामिल है. इस सीट का क्षेत्र का आधे से ज्यादा हिस्सा मुंगेली जिले और एक हिस्सा बिलासपुर जिले में आता है. बिल्हा सीट बीते तीन चुनाव से बीजेपी के धरमलाल कौशिक और कांग्रेस के सियाराम कौशिक की रणभूमि बनी हुई है.
बिल्हा विधानसभा की जातिगत समीकरण
बिल्हा विधानसभा सामान्य सीट होने के बाद भी अनुसूचित बाहुल्य सीट मानी जाती है. वहीं पिछड़ा वर्ग में कुर्मी, लोधी, साहू की अच्छी उपस्थिति है. इसके अलावा सामान्य वर्ग एवं अन्य जाति के लोग भी यहां निवास करते हैं. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही कुछ चुनावों से यहां कुर्मी नेताओं पर दांव लगाती आ रही है.
समस्याओ की कोई कमी नहीं
बिल्हा विधानसभा में समस्याओ की कोई कमी नहीं है। बुनियादी समस्याओ के अलावा रिहायशी इलाकों में पानी की समस्या बरसों से बनी हुई है, जिसे लेकर स्थानीय लोगों में काफी नाराजगी है। पथरिया की बात की जाए तो यहां पीने के पानी, सिंचाई व्यवस्था और सरकारी योजनाओं का ठीक तरह से क्रियान्वयन नहीं होना बड़ी समस्या है। वहीं सरगांव से बिल्हा और हिर्री में खनिज माफियाओं ने चूना पत्थर, डोलोमाइट, मुरुम, और मिट्टी के अवैध खनन से पूरा इलाका उजाड़ दिया है। वहीं हिर्री से आगे तक फोरलेन और फ्लाई ओवर बनाने के लिए बड़े पैमाने पर खेतों का अधिग्रहण किया गया। मकान तोड़े गए, लेकिन मुआवजा नहीं मिला, जिसे लेकर लोगों के पास शिकायतों की लंबी लिस्ट है।
बिल्हा का सियासी इतिहास
बिल्हा के सियासी इतिहास की बात करें तो 1962 से 1985 तक लगातार कांग्रेस के चित्रकांत जायसवाल ने यहां पर पार्टी का झंडा बुलंद किया, लेकिन 1990 में अशोक राव ने कांग्रेस से बगावत की और जनता दल की टिकट पर चुनाव लड़कर यहां कांग्रेस के चित्रकांत जायसवाल को मात दी। हालांकि 1993 में अशोक राव दोबारा कांग्रेस में शामिल हो गए और बीजेपी के धरमलाल कौशिक को हराया। 1998 में पहली बार यहां से धरमलाल कौशिक ने बीजेपी का झंडा बुलंद किया। लेकिन 2003 में वे अपनी सीट बचाने में नाकाम रहे। उन्हें कांग्रेस के सियाराम कौशिक ने मात दी। 2008 में धरमलाल कौशिक ने सियाराम कौशिक को फिर से शिकस्त दी। 2013 में एक बार फिर कांग्रेस ने सियाराम कौशिक पर भरोसा जताया और वो विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक को हराने में सफल हुए।
इस बार बिल्हा का चुनावी गणित त्रिकोणीय संघर्ष में उलझा नजर आ रहा है. बीजेपी अध्यक्ष धरमलाल कौशिक के इस क्षेत्र में उनके अलावा कांग्रेस और छत्तीसगढ़ जनता पार्टी के प्रत्याशी भी जोर आजमाइश कर रहे हैं.
2003 के चुनाव परिणाम
2003 कांग्रेस ने धरमलाल के मुकाबले सियाराम को उतारा. सियाराम करीब साढ़े छह हजार मतों से जीतकर विधानसभा पहुंचे. कांग्रेस के सियाराम को 48028 वोट मिले थे. वहीं, बीजेपी के धरमलाल कौशिश को 41477 मिले था.
2008 के चुनाव नतीजे
2008 के चुनाव में फिर दोनों कौशिक आमने- सामने थे. इस बार धरमलाल ने करीब छह हजार मतों के अंतर से सियाराम को पटखनी दी थी. बीजेपी के धरमलाल कौशिश को 62517 मत मिले थे. जबकि कांग्रेस के सियाराम कौशिश को 56447 मत मिले थे.
2013 के नतीजे
2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सियाराम कौशिक ने बीजेपी के धरमपाल के करारी मात दी थी. कांग्रेस के सियाराम कौशिश को 83598 वोट मिले थे. वहीं, बीजेपी के धरमपाल कौशिश को 72630 वोट मिले थे. इस तरह जीत का अंतर 10968 वोटों का रहा।