छत्तीसगढ़ -मतदान संपन्न हुए । यह चुनाव कुछ खास रहा क्योंकि अहम मुद्दे चर्चा से दूर रहे । कोई हिंदुत्व और राम मंदिर के नाम पर वोट मांग रहा था तो कोई नोटबंदी और जीएसटी के नुकसान बता कर जबकि छत्तीसगढ़ के संदर्भ प्रमुख विषय कुछ और थे । हद तो तब हुई जब सर्वाधिक नक्सल हिंसा प्रभावित क्षेत्र छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ सरकार सीमा पर मरते जवानों की दुहाई देकर नेहरू की पार्टी को वोट ना देने की अपील करती नजर आईं ।
जहां अशिक्षा, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, मरते किसान, अनियमित खनिज दोहन जैसे जायज मुद्दे विपक्ष ने मजबूती से नहीं उठाए वहीं आंकड़ों के जाल में फंसते कागजी विकास दिखाकर सत्ता मतदाताओं को भ्रमित करती नजर आई । मतदान के दिन तक नेताओं और समर्थकों का पाला बदलता रहा । मतदाता सूची में अपना नाम कटने से परेशान हजारों लोग अपनी पर्ची लेकर मतदान केंद्रों में भटकते रहे तो वहीं सैकड़ों खराब ईवीएम मशीनें कतार में लगे मतदाताओं को परेशान करती रही ।
टिकट वितरण से लेकर चुनाव प्रचार तक इस बार सब कुछ आश्चर्य जनक ही रहा । ए टीम, बी टीम, सी टीम में से कौन किसको नुकसान और कौन किसको फायदा पहुंचा रहा था सब कुछ संभावनाओं में ही सिमट कर रह गया । त्रिकोणीय संघर्ष में परिणामों को लेकर अभी कुछ भी कहना संभव नहीं क्योंकि इस बार जनता अपने निर्णय को लेकर खुद असमंजस में नजर आईं । इतना तय है कि जनता 15 साल की एंटी इनकंबेंसी के जहर को अपने कंठ से उगलना चाहती थी लेकिन विकल्प रूपी नीलकंठ खुद मोहिनी के अमृत से मोहित नजर आए ।
लेखक-मनीष कुमार