दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के उपमुख्य वाणिज्यिक प्रबंधक मसूद आलम अंसारी के व्यवहार से कार्य प्रणाली व दादागिरी से सभी परेशान

दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के उपमुख्य वाणिज्यिक प्रबंधक मसूद आलम अंसारी के व्यवहार से कार्य प्रणाली व दादागिरी से सभी परेशान,
मसूद आलम अंसारी के तानाशाही रव्या दक्षिण पूर्व रेलवे मे कई महीनों से चर्चा का विषय बना हुआ है
वाणिज्यक विभाग से जुड़े आम लोग और उनके अपने अधीनस्थ कर्मचारी तक सभी उनके इस हिटलर शाही व एकतरफ़ा कार्यवाही से परेशान है।
आश्चर्यजनक बात यह है कि उनकी जितनी भी शिकायत किसी भी के द्वारा की जाए पर उनके उच्च अधिकारी उनके ख़िलाफ़ कुछ करना तो दूर सुनना भी पसंद नहीं करते अब ये उनके उच्च अधिकारियों में उनका ख़ौफ़ है या उनके ग़लत कामों में उच्च अधिकारियों की मिलीभगत है यह तो जाँच का विषय है ।

कई सालो से आलम साहब अपने पद पर बिना योग्यता के कैसे बने हुए है।
इतनी शिकायतों व भ्रष्टाचार आरोप होने के बाद भी अपने पदक्रम से ऊपर के पद पर बने रहना अपने आप में जाँच का विषय है।

मसूद आलम अंसारी शाहब इसके पहले भी जिस पद पर आसिन थे वहाँ के अधिकारी व अधीनस्थ कर्मचारियों की नाराज़गी समय समय पर सामने आती रही है,
उसके बाद भी उनको पदोन्नत कर उपमुख्य वाणिज्यिक प्रबंधक जैसे पद पर नियुक्त करना समझ से परे है
उनके इस अनुचित पदोन्नति के कारण उनके व्यवहार व कार्यप्रणाली को जैसे पर ही लग गए व अब उनके नियमविरुद्ध कार्यों कि व हिटलरशाही रवैयों की सूची लगातार बढ़ते जा रही है
उनके इन कार्यों के ख़िलाफ़ अनगिनत शिकायतो के बावजूद उनके उच्चअधिकारी का उन पर कोई कार्यवाही न करना संदेहास्पद व किसी साज़िश कि तरफ़ इशारा करता है।
आलम शाहब के अपने अधिकारों का ग़लत उपयोग करने का आलम तो यहाँ तक पता चला है कि न तो वो उन फैसलो को लेने के लिये किसी तरह से ख़ुद योग्य है और न वो कार्यवाही करने से पहले अपने उच्चअधिकारियों से उचित अनुमति लेना ही ज़रूरी समझते है और ना कोई उच्चअधिकारी ही उनके फैसलो का विरोध करने की हिमाक़त करता है
उनके अनुचित फैसलों से रेलवे को होने वाले नुकसान का आकलन भी किसी ने करने या कराने की जरूरत नहीं समझी।
उपयुक्त तरीको से जिस तरह मसूद साहब द.पु.म.रेलवे को नुकसान पहुँचा रहे है उन पर अंकुश लगाना अत्यंत आवश्यक प्रतीत होता है
जैसे ही अधिकारियों की मनमाने खर्चे से होने वाले नुकसान व बदनामी का खामियाजा सारी सरकारी कंपनियों व उनके कर्मचारियों को तेजी से होते निजीकरण के रूप में भुगतना पड़ रहा है।

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